रिश्तों की राजनीति- भाग 19
भाग 19
अभिजीत और सान्वी घर देर से पहुँचते हैं। घर में कदम रखते ही आई-बाबा के सवाल शुरू हो जाते हैं। अभिजीत कहता है कि सान्वी और वो मॉल गए थे घूमने के लिए। काम की व्यस्तता के कारण वो अपनी छोटी बहन के लिए वक़्त ही नहीं निकाल पा रहा था, इसलिए उसने आज सोचा क्यों न सान्वी को वो मॉल ले जाये घुमाने के लिए।
तभी सान्वी कहती है….बाबा, दादा सिर्फ मॉल घुमाकर लाया है, दिलाया कुछ भी नहीं। बस ऐसे ही, विंडो शॉपिंग करवाकर घर ले आया।
अभी-अभी नौकरी लगी है तेरे दादा की, तनख्वाह तो मिल जाने दे, तब अच्छे से शॉपिंग करवा देगा।
क्या आई, तू हमेशा दादा की साइड लेती है।
अभिजीत आई के गले में बाँहे डालते हुए कहता है….. मेरी आई है, मेरी साइड ही लेगी न।
सान्वी रोने वाला मुँह सा बना लेती है, तभी बाबा सान्वी के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहते हैं….कल मैं अपनी सान्वी के लिए अच्छा सा ड्रेस लेकर आऊंगा।
सान्वी अभिजीत को जीभ चिढ़ाने लगती है। घर में हंसी ख़ुशी का माहौल होता है। सभी लोग आराम से बैठकर खाना खाते हैं। सबके सो जाने के बाद अभिजीत धीरे से सान्वी से पूछता है कि जगताप पाटिल और उसके बीच क्या बात हुई?
कुछ खास नहीं दादा, बस अक्षय और मेरी कहानी को लेकर सवाल पूछ रहे थे वो। बाकी जवाब में उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैं अक्षय से मिलना चाहती थी, लेकिन उन्होंने मिलने से मना कर दिया। पता नहीं, उनके दिल में क्या है?
कुछ दिन हमें इंतज़ार करना चाहिए उनके जवाब का। अगर कोई जवाब नहीं आया तो हमें अपने अगले कदम के बारे में सोचना पड़ेगा। तू सो जा आराम से, मैं तेरे साथ हूँ सान्वी।
जी दादा...
सान्वी अपने कमरे में चली जाती है सोने के लिए। बिस्तर पर लेटे-लेटे यही सोच रही होती है…...जगताप पाटिल का जवाब तो जरूर आएगा, वो भी सकरात्मक। चुनाव नज़दीक हैं और यह समय खतरा मोल लेने का नहीं है। इज्ज़त कमाने में बहुत वक़्त लगता है, लेकिन बदनामी होने में कुछ ही सेकण्ड्स।
इधर सान्वी के दिमाग में यह सब चल रहा होता है, उधर जगताप पाटिल के दिमाग में सान्वी की कही हुई बातें घूम रही होती हैं। वो मन ही मन सोच रहा होते है..… लड़की में आत्मविश्वास तो गजब का है। चेहरे से भी खूबसूरत है और दिमाग की भी तेज, बिल्कुल राजनेताओं वाला दिमाग है।
मैंने तो सोचा था वो रोयेगी, गिड़गिड़ायेगी , लेकिन वो तो बिल्कुल निश्चिन्त थी। हर बात सोच-समझ कर कह रही थी। बात तो है लड़की में। एक राजनेता के लड़के को बेवक़ूफ़ बना दिया और उस बेवक़ूफ़ को अभी तक यह विश्वास नहीं हो रहा कि वो बेवक़ूफ़ बन चुका है।
अक्षय के बस का नहीं है मेरी राजनीतिक महत्वकांशाओं को पूरा करने में मेरा सहायक बनना, न ही सिद्धि इसके लायक है, वो जरूरत से ज़्यादा ईमानदार है और राजनीति में ईमानदार लोगों की नहीं, चालाक लोगों की जरूरत होती है। सान्वी धमका भी गयी और उसकी धमकी का एहसास भी नहीं हुआ। यह लड़की काम की है।
जगताप पाटिल अपने सेक्रेटरी गोपाल को फोन लगाते हैं और कहते हैं कि कल सुबह अभिजीत और उसके परिवार को रविवार की शाम को डिनर के लिए आमंत्रित करो और उससे कहना, हम शादी के लिए तैयार हैं।
सुबह जब अभिजीत को जगताप पाटिल के सेक्रेटरी का फोन आता है तो वो उनकी बात सुनकर हैरान रह जाता है। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा होता इस बात पर कि जगताप पाटिल, सान्वी और अक्षय की शादी के लिए तैयार हैं और उन्होंने सबको खाने पर बुलाया है। उसे तो लगा था कि उसे सान्वी की शादी के लिए एक जंग लड़नी पड़ेगी , लेकिन यहाँ तो सब कुछ आसानी से हो गया था। मन में कहीं न कहीं यह विचार भी आ रहा था कि इसके पीछे कहीं कोई झोल तो नहीं?
लेकिन यह वक़्त ये सब विचार करने का नहीं था। वो सान्वी को कॉलेज छोड़ते हुए जाते वक़्त रास्ते में एक जगह बाइक रोककर सान्वी को यह खुशखबरी सुनाता है। सान्वी यह खुशखबरी सुनकर ख़ुशी से उछलने लगती है।
अभिजीत सान्वी को शांत करते हुए कहता है….अब ख़ुशी से उछलना बन्द कर और यह सोच कि आई-बाबा को इस बारे में कैसे बताएंगे?
बताना तो पड़ेगा दादा, वो भी आज ही और यह बात आई-बाबा को तुम ही बताओगे।
ठीक है सान्वी, फिर शाम को मिलते हैं घर में।
अभिजीत सान्वी को कॉलेज छोड़कर ऑफिस चला जाता है। इधर सान्वी अपनी जीत पर गर्व महसूस कर रही होती है।
रात को खाने के बाद अभिजीत आई-बाबा से कहता है कि उसे उनसे एक जरुरी बात करनी है।
बाबा कहते है….हाँ बोल अभिजीत।
बाबा वो एम एल ए जगताप पाटिल ने हम सबको रविवार की रात को खाने पर बुलाया है अपने घर।
आई-बाबा हैरान हो जाते हैं यह बात सुनकर और अभिजीत से पूछते हैं….यह कोई मज़ाक है क्या? जगताप पाटिल और हमारा क्या लेना-देना है आपस में जो वो हमें अपने घर खाने पर बुलायेगा?
बाबा यह मज़ाक नहीं है, सच है। दरअसल उसका बेटा अक्षय, सान्वी के ही कॉलेज में पड़ता था पहले। अब उसका कॉलेज खत्म हो गया है, तो वो अपने बाबा के काम में हाथ बंटाता है। वो और सान्वी एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। उसके बाबा ने शादी के बारे में ही बात करने के लिए बुलाया है।
आई तो जगताप पाटिल के लड़के अक्षय से सान्वी की शादी की बात सुनकर बहुत खुश हो जाती है, लेकिन बाबा को कुछ खास ख़ुशी महसूस नहीं होती। वो अभिजीत से कहते हैं…..इतना अमीर, इज्जतदार आदमी हम जैसे गरीब लोगों से रिश्ता जोड़ने के लिए तैयार हो जायेगा, वो भी इतनी आसानी से, मेरी समझ से बाहर है यह बात। जगताप पाटिल किस चरित्र का आदमी है यह तो सभी जानते ही हैं। जब वो ऐसा है तो उसका बेटा भी तो उसके जैसा ही होगा।
तभी सान्वी बीच में बोलने लगती है…..बाबा, अक्षय अपने बाबा जैसा नहीं है। वो बहुत शरीफ लड़का है। बड़ी मुश्किल से मनाया है बाबा, उसने अपने बाबा को हमारी शादी के लिए। आप प्लीज न मत कहिये।
सान्वी तू मेरी लाडली बिटिया है। तेरी ख़ुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है। लेकिन सच कहूं तो मुझे उस आदमी पर विश्वास नहीं है।
बाबा, मुझे अक्षय से मतलब है। उसके बाबा में, उनकी राजनीति में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है।
सान्वी बड़े लोग जलेबी की तरह स्वाद में मीठे और अक्ल से टेढ़े होते हैं। तू बहुत भोली है, तुझे दीन दुनिया की समझ नहीं है अभी। अक्षय को भूल जा, मैं तेरे लिए उससे भी अच्छा लड़का ढूंढूंगा।
तभी अभिजीत कहता है….बाबा प्लीज मान जाइए। मैं अक्षय से मिला हूँ, वो अच्छा लड़का है। बाप के कर्मों की सजा बेटे को देना ठीक नहीं है और फिर सान्वी उससे प्यार करती है। हमारे लिए उसकी खुशी से ज्यादा जरुरी कुछ और है क्या?
ठीक है अभिजीत, अगर तू कह रहा है वो अच्छा लड़का है तो मैं मान लेता हूँ, वो अच्छा ही होगा।
अभिजीत के बाबा इस रिश्ते को लेकर खुश तो नहीं थे, लेकिन सान्वी की ख़ुशी के लिए वो इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए थे।
अभिजीत को कहीं न कहीं दुख था मन में बाबा से झूठ बोलने का। वो जानता था कि अक्षय अच्छा लड़का नहीं है, लेकिन सान्वी की वजह से वो मजबूर था। इस शादी के पीछे का सच वो बाबा को बता भी तो नहीं सकता था।
❤सोनिया जाधव
Chetna swrnkar
17-Aug-2022 07:47 PM
Bahut khub
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आँचल सोनी 'हिया'
17-Aug-2022 06:27 PM
बहुत बढ़िया 💐
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Seema Priyadarshini sahay
17-Aug-2022 05:03 PM
बेहतरीन रचना
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